‌दी की तैयारियां जोरों पर थी। पकवानों की खुशबू से सारा पंडाल महक रहा था। छोटे-छोटे बच्चे डीजे की धुन पर उछल रहे थे। टीन-एजर्स लड़के भाग-भाग कर मेहमानों की आवभगत में लगे हुए थे। शेखर अपने दोस्तों के साथ क्रिकेट के विषय वाद-विवाद करने में मशगूल था। तभी उसकी नजर उस लड़की पर पड़ी। सांवली-सलोनी मासूम सुरत पर मोतियों जैसे सफ़ेद दांत उसकी खूबसूरती को चार चांद लगा रहे थे। उस पर समंदर जितनी गहरी नशीली आंखें उसे डुबोने को तैयार थी। वह चाह कर भी उस लड़की से नजरें नहीं हटा पा रहा था। इन सभी बातों से बेखबर वह लड़की अपनी सहेलियों से बातें करने में व्यस्त थी। तभी शायद उसे अपने चेहरे पर किसी के नजरों की गर्मी का एहसास हुआ। बात करते-करते उसने इधर-उधर नजर घुमाई तो देखा कि एक लड़का उसे प्यार से घूरे जा रहा है। लड़कियों को घूमने वाले लड़कों से उसे सख्त नफरत थी। उसनेे घबरा कर तुरंत अपनी नजर दूसरी तरफ हटा ली और अपनी सहेलियों के साथ बात करने में लग गई। कुछ देर बाद जब उसकी नजर उस लड़के पर पड़ी तो उसने देखा कि वह अभी भी उसकी तरफ ही नजरे जमाए हुए था। अब वहां बैठना उसके लिए मुश्किल हो रहा था। इसलिए वह वहां से उठकर अपनी सहेलियों के साथ पता नहीं कहां गुम हो गई। उसके जाने के बाद भी शेखर उसी के ख्यालों में खोया हुआ था।

 “कहां खोया हुआ है? दादा जी कब से तुझे‌ अंदर ढूंढ रहे हैं।”
 अजित ने उसे हल्का से धक्का देकर उसके ख्वाबों का सिलसिला त
“आं हां” कहते हुए वह हड़बड़ा कर उठा और बरामदे की तरफ गया। मगर अभी भी उसकी निगाहों में उसी लड़की का चेहरा बसा हुआ था।
शेखर लखनऊ के एक मिडिल क्लास फैमिली से ताल्लुक रखता था। वह शहर के एक नामी कालेज में इंटर की पढ़ाई कर रहा था। शेखर पढ़ाई में तो तेज था ही, दिखने में भी काफी स्मार्ट था। अजीत उसका क्लास फेलो था और वह उसी की इकलौती बहन नेहा की शादी में बाराबंकी आया हुआ था। उसके साथ-साथ उसके‌ कालेज के कुछ और दोस्त भी आए हुए थे। हालांकि उन्होंने कई बार आने में असमर्थता जताई। परंतु अजित के जिद के जीत के आगे उनकी एक ना चली।
 “कौन है वो लड़की और कहां से आई है?”
दादाजी की फरमाइश पूरी करके जब वह फ्री हुआ तो वह दुबारा उस लड़की को ढूंढने लगा। मगर वह कहीं भी नजर नहीं आई। उसे ना पाकर उसे थोड़ी बेचैनी सी महसूस होने लगी। अब वह दोस्तों के साथ तो बैठा था लेकिन उनकी बातों में दिलचस्पी नहीं ले रहा था। वह लागातार उसी के बारे में सोचें जा रहा था।
रात को वरमाला के समय में उसने देखा कि वही लड़की नेहा के हाथों को थामें वरमाला स्टेज पर चढ़ रही थी। सफेद सूट में उसका निखरा हुआ हुस्न कहर ढा रहा था। पल भर के लिए उनकी नजरें मिली तो उसने मुस्कुरा कर निगाहें नीचे कर ली। उसके बाद कई बार उन दोनों का सामना हुआ लेकिन दोनों बिल्कुल अजनबी बने रहे।
यार अजीत! वो नेहा के साथ सफेद सूट वाली लड़की कौन है?
सुबह विदाई के वक्त उसने अजीत से पूछ ही लिया। वे दोनों एक दूसरे से कोई बात नहीं छुपाते थे। यह नेहा की स्कूल की फ्रेंड “सनाया” है। अजीत ने बताया।
“यार, मुझे इनसे दोस्ती करनी है। किंतु मुझे समझ नहीं आ रहा कि मैं उनसे कैसे बात करूं। मुझे बड़ी शर्म आ रही है। कुछ हेल्प कर दे ना यार।”
“क्या प्यार-व्यार हो गया है क्या?” अजीत ने उसे छेड़ा।
“हां यार लगता तो ऐसे ही हैं।”
“हां तो कर ले ना बात, लड़कियों की तरह क्यों शर्मा रहा है। कॉलेज में तो बड़ा शेर बनता है। अजीत ने जानबूझकर व्यंग्य किया और विदाई में जुट गया। वह उसका उतरा हुआ चेहरा देख कर मन ही मन मुस्कुरा रहा था।


विदाई होने के बाद जब सारा शोर-शराबा खत्म हो गया तो शेखर ने किसी तरह हिम्मत जुटाई। और उस लड़की से बात करने का मन बना लिया।
“शेखर! तुझे दादाजी छत पर बुला रहे हैं।”
वह नजरों ही नजरों में उसे ढूंढ रहा था तभी उसे अजीत मिल गया।
मनमोस कर‌ वह छत पर गया मगर वहां पर दादाजी नहीं कोई और ही था। जिसे देखकर उसकी सांसे थम गई। दिल जोर-जोर से धड़कने लगा। छत की चारदीवारी से टेक लगाए सनाया बाहर की तरफ देख रही थी। उसे अपने प्यारे दोस्त को पर जी भर कर प्यार आया। उसने तो सोचा ही नहीं था कि इस तरह अकेले में मुलाकात हो जाएगी मगर अजीत ने अपनी दोस्ती का फर्ज निभा दिया था। जो डर गया वह मर गया। यह सोचकर वह हिम्मत जुटा कर उसकी तरफ बढ़ गया।
“हाय”
सनाया ने पलट कर देखा।
वो मैं…
हड़बड़ाहट में बाकी बात उसके गले में ही अटक गई। उसे कभी किसी लड़की से अकेले में बात करने का अनुभव नहीं था।
आपका नाम शेखर है और आप अजीत के दोस्त हैं। सनाया ने मुस्कुराते हुए कहा। शेखर समझ गया कि यह सब अजीत ने ही बताया होगा।
मैंने कल आपको देखा आप उस ड्रेस में बहुत खूबसूरत दिख रहीं थी। उसे मुस्कुराते देखकर उसकी थोड़ी हिम्मत बढ़ी थी।
 वह बिना समय गवाएं बोला- क्या हम दोस्त बन सकते हैं।
“हां क्यों नहीं! मेरा नाम सनाया है और मै नेहा की दोस्त हूं।” सनाया ने भी अपना परिचय दिया। फिर दोनों ने एक दूसरे के परिवार वालों के बारे में बातें करने लगे।
सनाया! मुझे आपसे…
इससे पहले कि वह आगे कुछ कहता, सनाया का फोन बजने लगा।
“हां पापा आ रही हूं।”
“पापा बुला रहे हैं। अब मैं चलती हूं।”
कॉल डिस्कनेक्ट करते हुए वह तेजी सीढ़ीयों की तरफ बढ़ गई।
“फिर मुलाकात कब होगी, कोई नंबर तो देती जाओ।”
“दिल से कोशिश करोगे तो जरूर मिल जाएगा।”
कहते हुए वह छन-छन करती हुए सीढ़ीयां नीचे की तरफ बढ़ गई।
अगले दिन वह भी अपने घर चला आया। लेकिन अब उसके साथ सनाया की यादें भी थी। वह हरदम उसके बारे में सोचता रहता। उसने अजीत से फोन करके सनाया नंबर पता लगाने को कहा।
“नेहा के पास तो उसका नंबर होगा लेकिन मैं अपनी छोटी बहन से इस बारे में बात नहीं कर सकता। पता नहीं वह मेरे बारे में क्या सोचेगी।” अजीत ने अगले दिन कॉल करके अफसोस जाहिर की। शेखर के पास जो उम्मीद थी। वह खत्म होती नजर आई। वह बिल्कुल मायूस हो गया।
लेकिन कहते हैं ना, किस्मत को जब मिलाना लिखा होता है तो वह कहीं ना कहीं से रास्ते ढूंढ ही लेती है।
 एक दिन शेखर फेसबुक चला रहा था। तभी उसके दिमाग में एक आइडिया आया। क्यों ना फेसबुक पर उसका नाम सर्च करके देखें। उसने तुरंत सर्च बॉक्स में उसका नाम टाइप किया। संयोगवश सनाया की फेसबुक आईडी मिल गई। फेसबुक आई डी में लगी प्रोफाइल पिक्चर को उसने पहली नजर में पहचान लिया। लेकिन अभी तक उसने एक भी पोस्ट नहीं डाली थी। टाइमलाइन देखकर ऐसा प्रतीत होता था कि उसने अपना एकाउंट दो दिन पहले ही क्रिएट किया था।
 उसने फटाफट फ्रेंड रिक्वेस्ट भेजी और बेसब्री से रिप्लाई का इंतजार करने लगा। रात भर जाग कर वह रिप्लाई का इंतजार करता रहा। कई घंटे तक इंतजार करने के बाद कोई रिस्पांस नहीं आया तो वह निराश होकर सो गया। सुबह जब नींद खुली तो उसने सबसे पहले फेसबुक खोलकर नोटिफिकेशन चेक किया। नोटिफिकेशन देखते ही उसकी खुशी का ठिकाना ना रहा। सनाया ने फ्रेंड रिक्वेस्ट स्वीकार कर लिया था और साथ में “हाय” का मैसेज भी लिखा था।
कुछ देर हाय-हेलो होने के बाद चैटिंग का सिलसिला शुरू हुआ।
“तो आखिर तुमने मुझे ढूंढ ही लिया।”
वो कहते हैं ना, “अगर तुम दिल से किसी को चाहो तो सारी कायनात तुम्हें उससे मिलाने में लग जाती है।”
“तुम्हारी बहादुरी नहीं है जनाब, मैंने ही फेसबुक अकाउंट बनाकर तुम्हारा काम आसान किया है।”
इसका मतलब है कि आग उधर भी जल रहे थी।
“आग तो नही मगर चिंगारी तो उठ ही चुकी थी।”
 “उस दिन के लिए मैं माफी चाहती हूं।”
“माफी मगर किसलिए?”
मैं तुम्हें अचानक से छोड़ कर चली आई इसीलिए?” एक्चुअली, पापा का जरूरी कॉल था इसलिए हमें भी उनके साथ आना पड़ा।”
“कोई बात नहीं” मैं समझ सकता हूं।
चैटिंग के द्वारा एक दूसरे की पसंद-नापसंद जानना, एक दूसरे से अपने दिल की बातें करना शुरू हो गया। थोड़ी देर बाद दोनों ने अपना मोबाइल नंबर भी एक्सचेंज कर लिया। अब वे रोजाना एक दूसरे के काॅल और मैसेज का इंतजार भी करने लगे। जिस दिन उनकी बात नहीं होती। उस दिन लगता कि उनकी कोई चीज खो गई हो।
पढ़ाई-लिखाई, खाना-पीना, सोने जगने से लेकर हर छोटी बड़ी चीज एक दूसरे के साथ शेयर करने लगे। हालांकि दोनों ने कभी एक दूसरे को खुलकर “आई लव यू” नहीं कहा था। लेकिन फिर भी दोनों को एक दूसरे से बेहद प्यार था।
धीरे-धीरे वक्त बीतता गया। वक्त बीतने के साथ-साथ दोनों के बीच प्यार और भी गहरा होने लगा। इतना गहरा कि अब वे एक दूसरे से मुलाकात के लिए तड़पने लगे। अतः उन्होंने नववर्ष के दिन बाराबंकी के एक खूबसूरत पार्क में एक दूसरे से मिलने का प्लान बनाया। तय समय पर दोनों पार्क में पहुंच गए। वहां उन्होंने एक दूसरे से ढेर सारी बातें की।


आई लव यू सनाया” मैं तुमसे बहुत बहुत बहुत प्यार करता हूं।” उचित अवसर देखकर शेखर ने शनाया को प्रपोज कर दिया। “आई लव यू टू” शनाया ने भी मुस्कुराते हुए हां कर दी। पहली मुलाकात के बाद धीरे-धीरे मुलाकातों का सिलसिला शुरू हो गया। शेखर जब भी अपनी प्रेमिका से मिलने आता। उसके लिए कोई ना कोई गिफ्ट जरूर लेकर आता। हालांकि सनाया बार-बार उसे मना भी करती। लेकिन वह हमेशा अपनी प्रेमिका को खुश करने को हर मुमकिन कोशिश करता। धीरे-धीरे उनका प्यार परवान चढ़ता चला गया।
कुछ दिनों बाद वैलेंटाइन डे का समय आया। यह उनके प्यार का पहला वेलेंटाइन डे था। हर तरफ प्रेमी-प्रेमिकाओं के बीच गिफ्ट के चर्चे चल रहे थे। प्रेमी अपनी प्रेमिकाओं को महंगे-महंगे गिफ्ट दे रहे थे। शेखर के मन में आया कि मुझे भी सनाया को कोई अच्छी सी गिफ्ट देना चाहिए। लेकिन दिक्कत यह थी कि उसके पास इतने पैसे नहीं थे कि वह सनाया को कोई अच्छा सा गिफ्ट कर पाए। इस वजह से वह वह बहुत परेशान और तनावग्रस्त डूबा था। बैठे- बैठे वह सोच रहा था कि अगर मैंने सनाया को कोई अच्छा सा गिफ्ट नहीं दिया तो शायद वह मुझसे नाराज हो जाएंगी। कहीं हमारे प्यार का रिश्ता कमजोर ना हो जाए।
ऐसे ही तरह-तरह की नकारात्मक बातें वह सोच रहा था। तभी सनाया आ गई। जब उसने देखा कि वह चिंतित और दुखी है तो उसने उससे दुखी होने की वजह पूछी। शिखर‌ शर्म के मारे अपनी परेशानी बताने से कतरा रहा था किंतु सनाया भी जिद पर अड़ गई।
“तुम्हें मेरे सर की कसम, बताओ क्या बात है?”
सनाया ने उसके हाथों को जबरदस्ती अपने सर पर रखते हुए कहा।
मैं इस वजह से दुखी हूं कि यह सारे लोग एक दूसरे को वैलेंटाइन गिफ्ट दे रहे हैं। लेकिन मैं तुम्हारे लिए कोई गिफ्ट नहीं ला पाया हूं। दरअसल‌ पिछले‌ हफ्ते पापा की जाॅब चली गई । और इस वक्त मेरी आर्थिक स्थिति इतनी अच्छी नहीं है कि मैं तुम्हें अच्छा सा कोई गिफ्ट दे सकूं। इसलिए मेरे दिमाग में बार-बार यही बात आ रही है कि यदि मैं तुम्हें कोई गिफ्ट नहीं दूंगा तो तुम मुझ से नाराज हो जाओगी। और मुझसे रिश्ता तोड़ लोगी।
इतनी बात सुनते ही सनाया को हंसी आ गई।
“बस इतनी सी बात के लिए तुम इतना टेंशन ले रहे हो।” वह हंसने लगी ।
“तुम्हें क्या लगता है। मैंने गिफ्ट पाने के लिए तुमसे रिश्ता जोड़ा है। क्या हमारा प्यार की बस इतनी ही कीमत है। जो इन छोटी-मोटी चीजो के लिए बिक जाएं। तुम्हें ऐसा सोचा भी कैसे कि मैं गिफ्ट के लिए नाराज हो जाउंगी।”
 हंसते-हंसते अचानक वह गंभीर हो गई।
“अरे पागल! ऐसी बातों से वहीं रिश्ता टुट सकता है। जो रिश्ता स्वार्थ से जुड़ा होता है। किन्तु हमारे प्यार में स्वार्थ नहीं है। हमारा रिश्ता प्यार और विश्वास से जुड़ा हुआ है और प्यार और विश्वास से बड़ा गिफ्ट कोई नहीं होता। इसलिए मुझे गिफ्ट की जरूरत नहीं है बल्कि तुम्हारे साथ की जरूरत है। अगर तुम मुझे गिफ्ट देना ही चाहते हो तो वादा करो कि तुम जीवन भर मेरा साथ दोगे।”
सनाया भावुक हो उठी।
“मैं वादा करता हूं मरते दम तक तुम्हारे साथ रहूंगा।”
शेखर ने उसका हाथ अपने हाथों में लेते हुए कहा।
“हां तो अब मेरा मुंह ताकते रहोगे या गले लगा कर बधाई भी दोगे।” वह बनावटी गुस्से में बोली।
हैप्पी वैलेंटाइन डे माय लव”
शेखर उसे सीने से लगाते हुए बोला।
हैप्पी वैलेंटाइन डे टु।”
मुस्कुराते हुए सनाया उसकी बाहों में समा गई।



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